I wrote it during muzzafarnagr (u.p.) riot occured last august.
आज खिली फिर खून की होली।फिर एक बार दरिंदे जागे है.। ।
सियासत कि इस दौड़ में फिर से।
अर्थी और जनाजे भागे है।
मासूमो के गले कटे है। अबलाओं के चीर फटे है।
बुजुर्गो कि भी छाती में। शमशीर और भाले दागे है।
इंसानियत हुई है आज पशेमां।
इंसान ना इंसान सा लागे है।
निःशब्द हुए वे लोग जो कहते।
इकीसवी सदी में हम आगे है।
unity in diversity को बुनते।
ये बड़ी कच्ची सूत के धागे है।
पशेमां- (ashamed )
bahut achha hai. bich ek do line chhod ke sare bahut sundar lage.
ReplyDeletethanks....
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