(TWO FRIENDS ARE TALKING)
हो रही थी, बात-बात....
गुज़र रही थी, रात-रात....
वो किस्सा था, सुना-सुना....
लव्जो में कुछ, यूँ बुना....
हर हर्फ़ था, जमा-जमा....
मनो वक़्त हो, थमा-थमा....
(HERE THE SOTRY STARTS)
की रात थी, घनी-घनी....
थी चांदनी, छनी-छनी....
थी तारो में, चमक-चमक....
थी रात-रानी, की महक....
थी धुंध रही, बरस-बरस....
की श्वेत था, फरस-फरस(floor)....
था खामोशियो का, शोर-शोर....
पवन चली थी, जोर-जोर....
सर्द का था, वो कहर....
सब चिल्ला रहे, सहर-सहर(MORNING...
मेरी एक राह से थी गुजर-गुजर।
तभी मेरी पड़ी नज़र।
वहाँ पर थी एक मज़ार ।
कहते थे सब उसे इलामत-ए-प्यार .(symbol of love) ।
रोज कि तरह ही वो क़दीम (old man)। गुलाब हाथ में लिए।
कब्र पे अपने यार के। सजदे में झुके हुए।
लड़खड़ाये हुए लव्जों में कुछ कह रहा था।
रोज में देखता था। पर आज तो मुझे सुनना था।
मै रुका मैंने सुना। वो कुछ यूँ था।
कि अब इंताह हुई इंतज़ार की।
और कितनी सज़ा मिलेगी मुझे प्यार की।
कि मेरे अश्कों से ये पत्थर भी पिंघले जाते है।
तेरी कब्र अब मौम के तेह भर है। क्या तुझसे ये भी ना तोड़े जाते है।
बहाने ना बना अब तू। अब तो इतराना छोड़ दे।
चंद दिन ही बाकी बचे है अब। मेरी आशिक़ी का कुछ तो मोल दे।
चाहत मेरी सिर्फ इतनी है। कि मुक़मल मेरा इश्क़ हो।
उस जहान में तो तुझसे मिलना ही है। इस जहान की भी रिवायतें(tradition) पूरी हो।
तभी एक साया सा वो कब्र से उठा।
उस क़दीम के आगोश में वो जाकर गिरा।
वे दो रूह एक बदन हुए जाते थे।
कौन किसमें जज्ब हुआ.???.सांस अब उस क़दीम(old man) को भी ना आतें थे। ।