Thursday, April 3, 2014

ऐसे ही

मुदत्तो बाद हसरतो ने करवटें बदली है।
देखो अब ये अंजाम-ए-रवानगी क्या होगा।              
             जुस्तज़ू, आरज़ू और ये तक़दीर।                        
             इन हालातो में तदबीर का हाल क्या होगा ???      
जब ताबीर रुबरु होगी मेरे ख्वाबो की।                        
वो मंज़र क्या होगा , वो आलम क्या होगा।
         
             
          
           
          
 रवानगी (motion)
जुस्तज़ू (search, quest),
आरज़ू (desire).
तक़दीर (fate)
तदबीर (कर्म )
ताबीर (interpretation)
          

Monday, March 24, 2014

बात बनाम काम

आओ कुछ बात करें।
छोटी ही सही पर मुलाक़ात करें।
             किसी की खोट ढूंढे।
             किसी की तारीफ करे।
 चलो आज फिर किसी को याद करें।
 आओ कुछ बात करें।
      आज कौन राजनीति में ऊँचा है।
      किस नेता ने किस की कुर्सी को खीचा है।
गर्म चाय के साथ पकोड़ों की चटकार करें।
आओ कुछ बात करें।
       सुना है आज सीमा पे फिर गोली चली है।
       तिरेंगे में लिपटी किसी कि ममता आज फिर जली है।
कुछ चंद लोगो के कारण पूरी कौम को बदनाम करें।
आओ कुछ बात करें।
                    अखबारो में था आदिवासियों के गावं जले है।
                  वैसे इस हफ्ते किस सिनेमा को कितने स्टार मिले है।
  किसी के साथ कुछ भी बीते। इसकी परवाह हम क्यूँ करें।
  आओ कुछ बात करें।
              कुछ करने के लिए सही कारण का होना जरूरी है।
              सही कारण के लिए सही बातो का होना जरूरी है।
आओ अब बातो के मूल्य को सार्थक करें।
आओ कुछ काम करें।
आओ हम साथ चलें।
आओ हम युवा हैं।
अपना होना यथार्थ करें।
   AAO KUCH BAAT KAREIN ........................




Saturday, March 8, 2014

उलझन

उड़ने का है,शौक मुझे..
पर पंख कहाँ से लाऊं।।

कह तो दू बहुत कुछ मगर...
मेरी बातों को संभाल पाए ,
वे लव्ज़ कहाँ से लाऊं।।

इंतज़ार बस सुबह की थी,
तैयार तो मैं कब से था...
सुबह हुई तो उलझन में पड़ गया,
कि मैं कहाँ जाऊं।।

या तो ये बस बातो की ही बात थी,
या इन बातो में कुछ बात थी...
इन सब बातो में उलझा मैं,
ये बात किसको बताऊँ।।

कि शाम एक,हार का एहसास,
सहर एक,अनकही मजबूरी ही तो है...
मजबूरी फिर से चलने की,
फिर से लड़ने की
अब ये पूछता हूँ खुद से मैं,
की ये रात कैसे बिताऊँ।।

करू तैयारियां फिर,एक नये आगाज की...
या आज कें इस,अंजाम का गम मनाऊँ।

-आशीष

Wednesday, February 12, 2014

एक किस्सा

(TWO FRIENDS ARE TALKING) 

हो रही थी, बात-बात.... 
गुज़र रही थी, रात-रात....
                      वो किस्सा था, सुना-सुना....
                      लव्जो में कुछ, यूँ बुना.... 
हर हर्फ़ था, जमा-जमा.... 
मनो वक़्त हो, थमा-थमा.... 

(HERE THE SOTRY STARTS) 

की रात थी, घनी-घनी.... 
थी चांदनी, छनी-छनी.... 
                             थी तारो में, चमक-चमक.... 
                              थी रात-रानी, की महक.... 
थी धुंध रही, बरस-बरस.... 
की श्वेत था, फरस-फरस(floor).... 
                  था खामोशियो का, शोर-शोर.... 
                   पवन चली थी, जोर-जोर....
 सर्द का था, वो कहर.... 
सब चिल्ला रहे, सहर-सहर(MORNING...
              मेरी एक राह से थी गुजर-गुजर।
             तभी मेरी पड़ी नज़र। 
वहाँ पर थी एक मज़ार । 
कहते थे सब उसे इलामत-ए-प्यार .(symbol of love) ।
           रोज कि तरह ही वो क़दीम (old man)। गुलाब हाथ में लिए। 
          कब्र पे अपने यार के।  सजदे में झुके हुए। 
लड़खड़ाये हुए लव्जों में कुछ कह रहा था। 
रोज में देखता था।  पर आज तो मुझे सुनना था। 
मै रुका मैंने सुना।  वो कुछ यूँ था। 
                                      कि अब इंताह हुई इंतज़ार की।
                                     और कितनी  सज़ा मिलेगी मुझे प्यार की। 
                     कि मेरे अश्कों से ये पत्थर भी पिंघले जाते है। 
                  तेरी कब्र अब मौम के तेह भर है। क्या  तुझसे ये भी ना तोड़े जाते है। 
                                   बहाने ना बना अब तू। अब तो इतराना छोड़ दे। 
                                   चंद दिन ही बाकी बचे है अब। मेरी आशिक़ी का कुछ तो मोल दे। 
                    चाहत मेरी सिर्फ इतनी है।  कि मुक़मल मेरा इश्क़ हो। 
                    उस जहान में तो तुझसे मिलना ही है। इस जहान की भी रिवायतें(tradition) पूरी हो। 

तभी एक साया सा वो कब्र से उठा। 
उस क़दीम के आगोश में वो जाकर गिरा। 
वे दो रूह एक बदन हुए जाते थे। 
कौन किसमें  जज्ब हुआ.???.सांस अब उस क़दीम(old man) को भी ना आतें थे। । 














 
 

Tuesday, February 11, 2014

दंगे

I wrote it during muzzafarnagr (u.p.) riot occured last august.

आज खिली फिर खून की होली।
फिर एक बार दरिंदे जागे है.। ।
          सियासत कि इस दौड़ में फिर से।
           अर्थी और जनाजे भागे है।
मासूमो के गले कटे है। अबलाओं के चीर फटे है।
बुजुर्गो कि भी छाती में। शमशीर और भाले दागे है।
           इंसानियत हुई है आज पशेमां।
           इंसान ना इंसान सा लागे है।
 निःशब्द हुए वे लोग जो कहते।
इकीसवी सदी में हम आगे है।
            unity in diversity को बुनते।
           ये बड़ी कच्ची सूत के धागे है।

पशेमां- (ashamed )

Saturday, February 8, 2014

Last Words in Someone's Memory

meri diwangi main tujho nazre karta hoon,
mere mehboob tu mujhe shamil hai,
rooh talak bas ab main sabre karta hoon...


   ab na khauff baki hai kahi, tujhe khone ka,
   bade sukoon se main ab, ye zindagi basar karta hoon...


kabhi kahin, koi hichke, aaye to samajh lena,
main aaj bhi, tujhpe utna hi asar karta hoon,


 khamoshiyaan aur tanhaiyaan, teri yado pe be-asar hai,
 ek aur vajah se, ab main tujhpe fakre karta hoon.



- Ashish Anand




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